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"कविता और साहित्य, इस यथार्थवादी समाज

का आईना है , सम्पूर्ण विश्व की आत्मा कविता

एवं साहित्य में ही बसती है |"

करन बहादुर (योगिराज- करनदेव)

धूप का फूल 

 

मे त्रसित हूँ त्रास का ,

अभिशाप मेरी जिंदगी |

भक्ति भी भगवान की ,

छल रही है वंदगी ||

पल रही है वेदना ,

शक्ति का स्वरूप ले |

कोई नही जो सीचता ,

हम खिले है धूप ले ||

हम खिले है धूप ले ...

रंजना

 

 मै  
पढ़ रहा हूँ
गढ़ रहा हूँ
देश व संसार को 
देखता हूँ,हर समय
हो रहे, अभिसार को
व्यापार है ये ..........
अर्थ की अभिव्यंजना
सामर्थ्य यह ,अभिव्यक्ति की है
ध्वन्यर्थ मेरी रंजना !!

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