कहीं इंसान झूठा है , कहीं भगवान झूठा है |
सही हम दोस्त हैं दोनों, कहीं मेहमान झूठा है ||
न रूठा है कभी कोई , न मेरा प्यार झूठा है |
पराया कौन है जग में, वही सबसे अनूठा है ||
अनूठा जो कहे कोई, मेरे रूह की दौलत को |
दिलों मे जान आती है , दिलों का तार टूटा है ||
पकड़ में वह नही आता , चला जाता किधर से है |
जिधर से देखता उसको, उधर हर बांध फूटा है ||
जोड़ेगा कभी कोई, उससे भी तेरा रिश्ता |
न झूठा है न सच्चा है, तु सच्चा मान बैठा है ||
भिखारी भीख दे-दे तो , उसे क्यों भीख कहता है |
समझ ले रूप को उसके, वही बस रूप झूठा है ||
कहूँ कैसे शिकारी को, वो घायल कर रहा तुमको |
वो घायल रूप ही तेरा, कहे भगवान मीठा है ||
KARAN BAHADUR
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