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Writer's pictureKavi Karan Bahadur

कहीं इंसान झूठा है


कहीं इंसान झूठा है , कहीं भगवान झूठा है |

सही हम दोस्त हैं दोनों, कहीं मेहमान झूठा है ||


न रूठा है कभी कोई , न मेरा प्यार झूठा है |

पराया कौन है जग में, वही सबसे अनूठा है ||


अनूठा जो कहे कोई, मेरे रूह की दौलत को |

दिलों मे जान आती है , दिलों का तार टूटा है ||


पकड़ में वह नही आता , चला जाता किधर से है |

जिधर से देखता उसको, उधर हर बांध फूटा है ||


जोड़ेगा कभी कोई, उससे भी तेरा रिश्ता |

न झूठा है न सच्चा है, तु सच्चा मान बैठा है ||


भिखारी भीख दे-दे तो , उसे क्यों भीख कहता है |

समझ ले रूप को उसके, वही बस रूप झूठा है ||


कहूँ कैसे शिकारी को, वो घायल कर रहा तुमको |

वो घायल रूप ही तेरा, कहे भगवान मीठा है ||


KARAN BAHADUR

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