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Writer's pictureKavi Karan Bahadur

कवि कहते हो ?

कवियों के प्रति कवि करन बहादुर की बेबाक राय अपनी एक कविता "कवि कहते हो?" के द्वारा |

कवि करन बहादुर

कवि कहते हो...!

कवि का धर्म निभाओ तो...

अपनी पाप पोटली खोलो ,

अपने को ही पाओ तो...

फिर लिखना, पढ़ना सब कुछ

अपनी बात निभाओ तो...

आधार कहाँ पर टिकता किसका ?

अनुभव किसके गढ़े हुए हैं ?

पढे हुए हैं सब अनपढ़ से !

अपनी उलझन में जड़े हुए हैं |

फिर कहते हैं कविता लिखकर...

हम हैं जग में बड़े महान !

किसका परिचय ? किसका ज्ञान ?

नहीं जानते वह तो खुद भी...

कैसा खुदा ? कहाँ अंजान ?

रूप बटोरे घर की कोठी |

मन के भाव पढ़े बस रोटी |

रोग विनाशक कथा कहाँ है ???...!

भोग प्रकाशक व्यथा कहाँ है ???...!

चाह रहे हैं जो कुछ मिलता...

उनकी धरती उनका नाम...|

कवि कहते हो...!

कवि का धर्म निभाओ तो...

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