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Writer's pictureKavi Karan Bahadur

आधे भाव समेट के , मांगे सब कुछ मोर


आध्यात्मिक दोहे - करन बहादुर

मैं हूं मोम कपास हूं , मै हूं गाजर आम |

मूली मै उस खेत की , जिसका कोइ न दाम ||


सब अनमोल विचार से , किसकी खेती नीकी |

बोयें जोतें जो भले , उनकी माटी ठीकि ||


सब परहित के भाव से , अपना करते लाभ |

अपना तो घर काठ का , अपनी माठे चाभ ||


गुरु बने जो भूख के , उनकी रूखी दाल |

काला सब कुछ कर रहे , अपनी जेब खंगाल ||


आधे भाव समेट के , मांगे सब कुछ मोर |

पोर –पोर पर गिन सखे , होते भाव विभोर ||


हरियाली किस आँख की, अपना देश जहान |

अपना तो बस गाँव ही , है सबका संज्ञान ||


भूली बिसरी छोड़ दो , आभा नूतन बोय |

कौन पुरातन ग्रन्थ का , पंथ गया है खोय ||

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