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Writer's pictureKavi Karan Bahadur

मंथन में भी मरा नहीं मैं



मंथन में भी मरा नहीं मैं ,

जिनसे बंधन दूर हुये |

स्वच्छन्द विचरते आसमान में ,

अन्धेन में बस क्रूर हुये ||


रंग भेद क्या जाति भेद क्या ,

भांति भांति के प्रश्न समर्पित |

उत्तर तुम ही दो उन्नति का ,

अवनति भार करूँ सब अर्पित ||


विध्न विधाता पालन कर्ता ,

यह संसार तुम्हारी लीला |

नियम धर्म सब तुमने राखे ,

फिर क्यों उलझे मान रोबीला ||


सब मानो सब जानो अपना ,

अपनी अपनी नीति पढ़ो |

कर लो सबसे प्यार मुहब्बत ,

बस अपनी यह नीति गढ़ो ||


नापो तौलो खोजो परखो ,

सब में एक वही विज्ञान |

सबका वह ही सेतु बना है ,

सबका ज्ञान वही अभिमान ||


आगे उसके और नहीं कुछ , 

जितना चाहो तुम सिर पटको |

मिल जाये तो मानो अपना ,

जो होता सब विधि विधान ||


Kavi Karan Bahadur

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