मक्खन है नवनीत है , है यह सोन समान।
योग साधना तो सखे , मानो जान जहान।।
योग हमारा ब्रम्ह है , योग हमारा दम्भ।
योग हमारी साधना , योग बना स्तम्भ।।
योग परस्पर भोग का , योग परस्पर राम।
रावण फिर टिक पाय ना , रावण का संग्राम।।
कुंठा के हर भाव का , करता योग विनाश।
आशा फिर - फिर जागती , है कुंठा का नाश।।
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